IAS Suhas Lalinakere Yathiraj : पैरों से दिव्यांग IAS अधिकारी जिसने पैरालंपिक खेलों में देश का बढ़ाया गौरव, जीता रजत पदक
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IAS Suhas Lalinakere Yathiraj : कहते हैं मेहनत से किए गए हर काम में सफलता जरूर हासिल होती है. आज हम आपको जिस आईएएस अधिकारी के बारे में बताने जा रहे हैं उन्होंने पहले तो यूपीएससी जैसे कठिन परीक्षा को पास कर अपने परिवार का नाम पूरे देश में रोशन किया. फिर पैरालंपिक खेलों में रजत पदक जीतकर पूरी दुनिया में देश का नाम रोशन किया. इस आईएएस अधिकारी का नाम सुहास एलवाई है.
पैरों से दिव्यांग और बचपन में ही पिता का साथ खोने के बाद भी उन्होंने अपने हौसले को कमजोर नहीं होने दिया. उन्होंने जितनी मेहनत से पढ़ाई कर यूपीएससी परीक्षा पास की. उतनी ही सिद्दत से खेलों में अपनी रुचि को कम नहीं होने दिया. नौकरी के साथ साथ उन्होंने खेल में अपनी प्रतिभा का दम पूरी दुनिया में दिखाया. आइए जानते हैं नौकरी के साथ साथ उन्होंने कैसे टोक्यो पैरालंपिक खेल 2021 तक का अपना सफर तयर किया किया.
कौन हैं (IAS Suhas Lalinakere Yathiraj) सुहास एलवाई
सुहास एलवाई का पूरा नाम सुहास लालिनाकेरे यतिराज है. उनका जन्म कर्नाटक के शिमोगा जिले में हुआ था. मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाले सुहास बचपन से ही खेल कूद में रुचि रखते थे. उन्हें बचपन से ही क्रिकेट खेलना काफी पसंद था. लेकिन बचपन से ही पैरों से दिव्यांग होने की वजह से उन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. वो अपने पसंदीदा खेल को खेल नहीं पाते थे. हालांकि उनके पिता की तरफ से पूरा सहयोग मिला.
सुहास बताते हैं कि पिता और परिवार की बदौलत ही उनको शुरुआत से क्रिकेट काफी पसंद था. उन्होंने कभी भी किसी खेल के लिए बेटे को नहीं रोका. पिता नौकरी करते थे. जिस वजह से उनका ट्रांसफर होता रहता था. इस वजह से उन्हें अलग अलग जगहों पर रहने का मौका मिला लेकिन उनकी पढ़ाई पर इसका असर देखने को मिला. उन्हें अलग अलग जगहों पर पढ़ाई करनी पड़ी.
उन्होंने अपनी शुरुआती पढ़ाई गांव के एक साधारण स्कूल से की. इसके बाद उन्होंने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी से कम्प्यूटर विज्ञान से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. बता दें कि जिस दौरान उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की तभी उनके पिता का निधन हो गया. पिता के निधन के बाद सुहास पूरी तरह टूट गए. पिता की मौत के बाद सुहास ने सिविल सेवा में अपना करियर बनाने का विचार किया. इसके बाद उन्होंने यूपीएससी परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी.
यूपीएससी परीक्षा में हासिल की थी 382वीं रैंक
पढ़ाई में अच्छा होने की वजह से सुहास ने यूपीएससी परीक्षा पास कर ली. उन्होंने साल 2006 में 382वीं रैंक हासिल की थी. सुहास बताते हैं कि यूपीएससी परीक्षा की सफलता के दौरान उन्हें अपने पिता की कमी बहुत महसूस हुई. हालांकि परिवार में उनकी सफलता को लेकर काफी खुशी भी थी. उनकी कुछ सालों में आजमगढ़ में नियुक्ति हो गई. उन्हें आजमगढ़ का जिलाधिकारी बना दिया गया. सुहास का सफर नौकरी लगने के बाद भी खत्म नहीं हुआ.
एकबार वो एक बैडमिंटन टूर्नामेंट का उद्घाटन करने पहुंचे. इस दौरान कुछ खिलाड़ियों ने उनके साथ खेलने का आग्रह किया. सुहास खिलाड़ियों की बात मान गए और बैडमिंटन खेलने लगे. उन्होंने इस दौरान कई धुरंधर खिलाड़ियों को मात दे दी. इस तरह से उनका बैडमिंटन प्रेम शुरू हो गया. यहीं से उनका अतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनने का सफर भी शुरू हो गया. उन्होंने खूब प्रैक्टिस की. और देश को रजत पदक हासिल कर बता दिया कि मेहनत और लगन से कुछ भी हासिल किया जा सकता है. सुहास फिलहाल गौतमबुद्धनगर में जिलाधिकारी के पद पर अपनी सेवाएं भी दे रहे हैं.
सर्वोच्च नागरिक सम्मान से किया जा चुका है सम्मानित
सुहास ने यूपीएससी परीक्षा के साथ साथ खेलकूद में भी अपनी प्रतिभा दिखाई. जिलाधिकारी बनने के बाद साल 2016 में पेइचिंग चीन में हुए एशियाई पैरा बैडिमंटन में चैंपियनशिप जीतने वाले पहले भारतीय बनें. इसके बाद उन्होंने साल 2018 में वाराणसी में दूसरी बार बैडमिंटन प्रतियोगिता में राष्ट्रीय स्तर पर चैंपियन बनें. साल 2016 में उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान यश भारती पु्रस्कार से सम्मानित किया गया
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