Gaurav singh sogarwal ias : 14 साल की उम्र में माता पिता के निधन के बाद उठाई परिवार की जिम्मेदारी, यूपीएससी परीक्षा में 49वीं रैंक हासिल कर बने आईएएस अधिकारी

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Gaurav singh sogarwal ias : अगर जीवन में सफलता हासिल करनी हैं तो माता-पिता का साथ होना बहुत जरूरी होता है. आज हम आपको एक ऐसे आईएएस अधिकारी के बारे में बताएंगे जिनके सिर से बचपन में ही माता पिता का साथ छूट गया था. इस आईएएस अधिकारी का नाम गौरव सिंह सोगरवाल है. अनाथ होने के बावजूद भी इन्होंने अपने आईएएस अधिकारी बनने के सपने को पूरा किया.

इतना ही नहीं उन्होंने जितनी मेहनत के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास की उतनी ही जिम्मेदारी के साथ घर को भी संभाला. यूपीएससी पास करने वाले अभ्यार्थियों में ऐसी कहानियां बहुत कम ही मिलती हैं. बिना किसी मदद के इस कठिन परीक्षा को पास करने वाले गौरव युवाओं के लिए एक प्रेरणा का स्वरूप हैं. आइए जानते हैं पारिवारिक संघर्ष के बीच उन्होंने कैसे इस कठिन परीक्षा को पास कर सफलता हासिल कर ली.

कौन है (gaurav singh sogarwal ias) आईएएस गौरव सिंह सोगरवाल

आईएएस गौरव सिंह सोगरवाल का जन्म राजस्थान के भरतपुर के एक ग्रामीण किसान परिवार में हुआ था. इनका परिवार पूरी तरीके से खेती-बाड़ी पर आश्रित था. जिससे इनके परिवार के घर का खर्च चलता था. परिवार में माता पिता के अलावा दो बहनें और एक छोटा भाई था. गौरव की माता का निधन बचपन में ही हो गया. मां के ना रहने पर उनकी कमी झेल रहे गौरव अभी दुख से संभल भी नहीं पाए थे कि उनके पिता का देहांत हो गया. 14 साल की उम्र में इनके पिता ने भी इनका साथ छोड़ दिया .

Gaurav singh sogarwal ias : 14 साल की उम्र में माता पिता के निधन के बाद उठाई परिवार की जिम्मेदारी, यूपीएससी परीक्षा में 49वीं रैंक हासिल कर बने आईएएस अधिकारी 1

जिसके बाद से ये काम करने वाले अकेले शख्स बचे. लेकिन फिर भी इन्होंने अपने आत्मविश्वास को डगमगाने नहीं दिया और अपने कर्तव्य पथ पर लगे रहे. इनके परिवार का घर चलाने का भार भी अब इन्हीं के ऊपर था. ये अपनी पढ़ाई के साथ-साथ बच्चों को ट्यूशन देकर और खेती में काम करके घर का खर्च चलाते थे. इनकी शुरुआती पढ़ाई गांव के ही एक छोटे स्कूल में हिंदी माध्यम में हुई. जिसके बाद इन्होंने पुणे के भारतीय विद्यापीठ नामक इंजीनियरिंग संस्थान से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की.

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आर्थिक तंगी का सामना कर रहे गौरव कॉलेज के दौरान काफी पढ़ाई करते थें. वो कहते हैं कि जिस समय इनके कॉलेज के दोस्त पार्टी आदि करते थे उस समय ये अपनी पढ़ाई में लगे रहते थे. संघर्ष के दिनों का जिक्र करते हुए वो कहते हैं कि कॉलेज जाने से पहले सुबह 5 बजे उठकर स्कूल के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करते थे. जिससे घर का खर्च निकलता था और जो समय मिलता उसमें खेती भी संभालते थे. इस प्रकार इन्होंने अपनी पढ़ाई को जारी रखते हुए अपने परिवार की जिम्मेदारी का बखूबी निभाया.

कोचिंग संस्थानों में पढ़ाकर चलाया परिवार का खर्च

गौरव बताते हैं कि पिता का सपना था कि उनका बेटा अधिकारी बने. पिता के सपनों को साकार करने के लिए उन्होंने दिल्ली जाकर यूपीएससी की तैयारी करने का विचार किया. दिल्ली में भी उनके साथ पैसों की तंगी रही. इसलिए उन्होंने वहीं पर एक आईआईटी की कोचिंग संस्थान में पढ़ाना शुरू कर दिया. दिल्ली में ये कोचिंग में पढ़ाने के साथ-साथ अपनी तैयारी भी करते थे. कुछ समय बाद इनका चयन कोटा की एक प्रतिष्ठित कोचिंग संस्थान में हो गया. इस कोचिंग संस्थान में इन्हें सालाना 20 लाख रुपए पैकेज मिलता था. इसके बाद इनका आर्थिक स्तर थोड़ा ठीक हुआ. इस दौरान इन्होंने अपनी बहन की शादी की और छोटे भाई को एमबीए की पढ़ाई करवा दी.

BSF में असिस्टेंट कमांडेंट के पद पर हुआ था चयन

आईएएस गौरव सिंह सोगरवाल पढ़ाई में काफी अच्छे थे. यही वजह थे इन्होंने जितनी परीक्षाएं दी उनमें इन्हें सफलता ही हासिल हुई. यूपीएससी की तैयारी के दौरान उन्होंने बीएसएफ में नौकरी के लिए अप्लाई किया. उनका बीएसएफ में असिस्टेंट कमांडेंट के तौर पर पहली ही बार में चयन हो गया. हालांकि इस दौरान इन्हें पिता का सपना पूरा करने का विचार आया. इसलिए इन्होने असिस्टेंट कमांडेंट की नौकरी छोड़कर यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी में अपना फोकस लगाया.

चौथे प्रयास में बने आईएएस अधिकारी

गौरव सिंह सोगरवाल अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए यूपीएससी की तैयारी में लगे रहे। यूपीएससी के पहले प्रयास में 1 अंक से ये प्री नहीं निकाल पाए. इसके बाद इन्होंने दूसरा प्रयास किया और दूसरे प्रयास में भी इन्हें काफी हद तक सफलता हासिल हुई. लेकिन ये मेंस में कुछ नंबरों की वजह से रुक गए. फिर भी इन्होंने हार नहीं मानी और एक के बाद एक अटेंम्प्ट देते गए. तीसरे प्रयास में इन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी इस बार इन्हें सफलता हासिल हो गई.

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इन्हें तीसरे प्रयास में 99वीं रैंक हासिल हुई थी. इसके बाद इन्हें आईपीएस रैंक मिल गई. गौरव इरादों के बहुत पक्के थे. उन्होंने जिस चीज को ठान लिया उसे पूरा करके ही मानते हैं. आईएएस अधिकारी बनने के इनके सपनों को इन्होंने फीका नहीं होने दिया. ना ही इन्होंने उसके लिए मेहनत और लगन में कमी कमी. साल 2016 में इन्होंने 49वीं रैंक हासिल कर टॉप किया. इसी के साथ ये आईएएस अधिकारी बन गए. उनकी सफलता की कहानी आज के युवाओं के लिए प्रेरणा है. गरीबी, पारिवारिक जिम्मेदारियों के बीच सफलता हासिल करने का ऐसा हुनर देश के सभी युवाओं को सीखना चाहिए.

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