Success Story of IAS Kuldeep Dwivedi : 1100 रुपए से परिवार का खर्च चलाने वाले सिक्योरिटी गार्ड का बेटा बना IAS अधिकारी, किताबें मांगकर की पढ़ाई और UPSC में हासिल की 242वीं रैंक

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Success Story of IAS Kuldeep Dwivedi : सरकारी नौकरी को लेकर ज्यादातर लोगों के मन में ये धारणा रहती है कि सुविधाओं में रहने वाले लोग ही सफलता पाते हैं या कहें तो गरीब आदमी का सरकारी नौकरियों में सफलता पाना बहुत मुश्किल होता है. सरकारी परीक्षाएं बिना किसी भेदभाव के सिर्फ नतीजे देखती हैं ना की किसी भी शख्स की पृष्ठभूमि. सरकारी नौकरियों की परीक्षाओं में बात अगर यूपीएससी की परीक्षा को लेकर की जाए तो उसका लेवल अलग ही हो जाता है. जहां आपको एक अमीर परिवार के बच्चे से लेकर गरीब परिवारों के बच्चों की सफलता की कहानियां सुनने को मिल जाती हैं.

आज हम आपको आईएएस कुलदीप द्विवेदी (IAS Kuldeep Dwivedi) के संघर्ष की कहानी बताएंगे. जिनके पिता एक सिक्योरिटी गार्ड थें . पिता का सपना था कि उनका बेटा बड़ा होकर सरकारी अधिकारी बनें. घर की आर्थिक परिस्थितयां ज्यादा अच्छी नहीं थी उसे बावजूद उनकी कड़ी मेहनत और लगन ने उन्हें आईएएस अधिकारी बना दिया. आइए जानते हैं कैसे एक गरीब घर के लड़के ने आईएएस बनने का सफर तय किया.

कौन हैं (IAS Kuldeep Dwivedi) आईएएस कुलदीप द्विवेदी

उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के रहने वाले आईएएस कुलदीप द्विवेदी (IAS Kuldeep Dwivedi) एक गरीब परिवार से हैं. इनके पिता लखनऊ विश्वविद्यालय में सिक्योरिटी गार्ड थे. कुलदीप के पिता अपने बेटे को बड़ा अधिकारी बनने का सपना देखते थें. लेकिन घर की आर्थिक परिस्थितयां ज्यादा अच्छी नहीं थीं. साल 1991 में कुलदीप के पिता की तनख्वाह करीब 1100 रुपए थी. परिवार के 6 सदस्यों का इस आमदनी में खर्च चलाना बहुत मुश्किल हो जाता था. पूरा परिवार पिता की सैलरी पर आश्रित था. कुलदीप के पिता अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते थें. इसलिए उन्होंने अपनी गार्ड की नौकरी से समय निकालकर खेती-बाड़ी शुरू कर दी.

Success Story of IAS Kuldeep Dwivedi : 1100 रुपए से परिवार का खर्च चलाने वाले सिक्योरिटी गार्ड का बेटा बना IAS अधिकारी, किताबें मांगकर की पढ़ाई और UPSC में हासिल की 242वीं रैंक 1

कुलदीप ने अपनी 10वीं और 12वीं की पढ़ाई गांव के ही सरकारी स्कूल से पूरी की. इसके बाद साल 2009 में ग्रेजुएशन की पढ़ाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की. यहां से उन्होंने हिंदी विषय में बीए की डिग्री हासिल की. उसी विश्वविद्यालय से उन्होंने भूगोल से पोस्ट ग्रेजुएशन (IAS Kuldeep Dwivedi education) की पढ़ाई पूरी की. अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए उन्होंने दिल्ली जाकर यूपीएससी की पढ़ाई करने का फैसला किया.

Success Story of IAS Kuldeep Dwivedi : 1100 रुपए से परिवार का खर्च चलाने वाले सिक्योरिटी गार्ड का बेटा बना IAS अधिकारी, किताबें मांगकर की पढ़ाई और UPSC में हासिल की 242वीं रैंक 2

यूपीएससी की पढ़ाई के लिए कुलदीप दिल्ली चले गए और एक छोटा सा किराए का कमरा लेकर पढ़ाई करने लगे. घर की खराब आर्थिक स्थितियों ने यूपीएससी की तैयारी के दौरान भी कुलदीप का साथ नहीं छोड़ा. आर्थिक तंगी के कारण उनके पास कभी भी यूपीएससी की पढ़ाई के लिए पूरी किताबें नहीं हो पाईं. यूपीएससी की तैयारी के लिए वो अपने दोस्तों से किताबें मांगकर पढ़ाई करते थे. पैसे कम खर्च हों इसलिए कुलदीप (Kuldeep Dwivedi) हर काम रूम पार्टनर के साथ मिलकर करते थें.

2 बार फेल होने के बाद बने IAS अधिकारी

कुलदीप ने पूरी मेहनत के साथ यूपीएससी की तैयारी करना शुरू कर दिया. लेकिन पहली बार की परीक्षा में उन्हें बुरी तरह असफलता हासिल हुई. पहली बार की परीक्षा में वो प्रिलिम्स की परीक्षा भी पास नहीं कर पाए. इसके बाद उन्होंने अगले अटेम्ट की तैयारी करना शुरू कर दिया. इस बार प्री की परीक्षा तो पास कर गए लेकिन मेन्स की परीक्षा में फिर असफलता हासिल हुई.

परीक्षा की तैयारी करते हुए कुलदीप को 2 साल गुजर गए थे. परिवार की आर्थिक स्थिति अब बेटे की दिल्ली की पढ़ाई करवाने में असमर्थ हो रही थी. कुलदीप भी हिम्मत हार रहे थें लेकिन पिता ने फिर से बेटे को पढ़ने के लिए हौसला दिया. उन्होंने पिता की बात मानकर फिर से तैयारी करने लगे.इसबार कुलदीप (Kuldeep Dwivedi) ने रात-दिन एक करके मेहनत करना शुरू कर दिया. पिछले 2 सालों में परीक्षा में मिली असफलताओं से सीख लेकर उन्होंने तैयारी सटीक और एकाग्र होकर की.

Success Story of IAS Kuldeep Dwivedi : 1100 रुपए से परिवार का खर्च चलाने वाले सिक्योरिटी गार्ड का बेटा बना IAS अधिकारी, किताबें मांगकर की पढ़ाई और UPSC में हासिल की 242वीं रैंक 3

इसका नतीजा ये हुआ कि साल 2015 में वो यूपीएससी की परीक्षा पास कर गए. तीसरी बार में उन्होंने यूपीएससी में 242वीं रैंक हासिल कर माता पिता का सपना पूरा कर दिया. इस परीक्षा में सफलता के बाद उन्हें इंडियन रेवेन्यू सर्विस में चयनित कर लिया गया. उनकी सफलता उन लोगों के लिए एक नजीर भी बनी जो गरीबी या असफल होने पर अपनी मंजिल से भटक जाते हैं.

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